View Single Post
Old 06-02-2012, 07:16 PM   #3
Drugmachine

Join Date
Apr 2006
Posts
4,490
Senior Member
Default
friends,

i received this as a forwarded post from a member in another forum where i am a member. Though it is that of a gujarati who has settled in us, i think many of our members will be able to identify themselves with the dilemma of the author of the poem. So i present this here:

The nri poem .... ना इधर के रहे .... ना उधर के रहे - by an abcd (american
born confused desi, most probably a gujju).

ना इधर के रहे ,
ना उधर के रहे,
बिच में लटकते रहे

ना india को भुला सके,
ना america अपना सके
इंडियन अमेरिकन बन के काम चलाते रहे

ना गुजराती को छोड़ सके
ना अंग्रेजी को पकड़ सके
देसी accent में गोरो को confuse करते रहे

ना turkey को पका सके
ना ग्रेवी बना सके
मुर्गी को दम देके thanks giving मनाते रहे

ना christmas tree बना सके
ना बच्चो को समजा सके
दिवाली पर santa बनके तोहफे बाँटते रहे

ना shorts पहेन सके
ना सलवार कमीज़ छोड़ सके
jeans पर कुरता और स्नीकर्स पहेन कर इतराते रहे

ना नाश्ते में donut खा सके
ना खिचड़ी कढी को भुला सके
pizza पर मिर्च छिड़ककर मज़ा लेते रहे

ना गरमी को भुला सके
ना snow को अपना सके
खिड़की से सूरज को देखकर beautiful day कहेते रहे

अब आयी बारी baroda जाने की तो
हाथ में पानी का शीशा लेकर चलते रहे

लेकिन वहां पर.............

ना भेल पूरी खा सके
ना लस्सी पी सके
पेट के दर्द से तड़पते रहे
हरड़े और एसबगुल से काम चलाते रहे

ना मच्छर से भाग सके
ना खुजली को रोक सके
cream से दर्दो को छुपाते रहे

ना फकीरों से भाग सके
ना dollar को छुपा सके
नोकरो से पीछा छुड़ाकर भागते रहे

ना इधर के रहे
ना उधर के रहे
कमबख्त कही के ना रहे
बस "abcd "
औलाद को और confuse बनाते रहे
*
onnumay puriyalay....!!

Tvk
Drugmachine is offline


 

All times are GMT +1. The time now is 07:47 AM.
Copyright ©2000 - 2012, Jelsoft Enterprises Ltd.
Design & Developed by Amodity.com
Copyright© Amodity